Thursday 8 March 2012

तुम्हारी नाक पर गुस्सा क्यूं हर वक्त रहता है

तुम्हारी नाक पर गुस्सा क्यूं हर वक्त रहता है
मुझे लेकर तेरा लहजा बड़ा ही सख्त रहता है

मुझे सचमुच में खो दोगी एक दिन सच्ची कहता हूँ
तुम्हारी बेरुखी से तंग तुम्हारा भक्त रहता है
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जो सच में प्यार है मुझसे तो इतना क्यूं चिल्लाती है
मेरी हर बात के पीछे तू शक काहे जताती है

हजारों बार बोला है नही तुझको दगा दूंगा
मेरे विश्वास की धज्जी तू पल पल क्यूं उड़ाती है
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नही मुझ पर यकीं तुझको तो चल इक काम करता हूँ
कलम करके मेरा ये सर तेरे कदमों में धरता हूँ

तुम्हारे इक इशारे पर तबाह खुद को मैं कर लूँगा
नही बेकार में तेरे लिए मैं आहें भरता हूँ
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ना जाने क्यूं तुझे मुझ में अब शराफत नही दिखती
तुम्हारी आँख में पहले सी वो चाहत नही दिखती

तुम्हे ही सोचता रहता हूँ उठते बैठते जानम
इन दिनों रूह तडफती है कही राहत नही दिखती
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मुझे नाराज होना ही अगर आता तो बतलाता
तडफ का झोंका जुदाई में तुम्हारी और भिजवाता

अगर आंसू भी आते तो मैं कहता लोगों से हंसकर
घरेलू मसला है यारों नही है इश्क का खाता

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