Friday 21 October 2011

क्यूं

क्यूं हर वक्त खुले रहते हैं गेसू तुम्हारे
किसके लहू से धोने की कसम खाई हैं
सब बयाँ कर दिया हैं बोझिल आँखों ने
शायद आपने न सोने की कसम खाई हैं

Friday 16 September 2011

पैराहन नही सोच है शान मुफलिसी की










13
जो जानते है हकीकत में हाल मुफलिसों का
उठाते है सरे बज़्म वो सवाल मुफलिसों का
दिलाकर ही छोड़ते है हक परस्तों को हक
रखते है जो अक्सर ख्याल मुफलिसों का
14
पैराहन नही सोच है शान मुफलिसी की
रखियेगा पास सदा आन मुफलिसी की
अमीरी का लबादा ओढने वालों सुनों
बातों में छिपी है पहचान मुफलिसी की
15
मुफलिसों का इतना ही कसूर होता है
बनावटी पन उनसे थोडा दूर होता है
नही बहा पाते मगरमच्छ के आंसूं
दिल उनका मजबूरियों से चूर होता है


 

Tuesday 13 September 2011

वरना उम्र को चाव से खाता है गम


10
कौम ओ- मजहब की सोचने वाले
होते है तन के उजले मन के काले
कितना ही यकीन कीजिये इन पर
नही बदलते है ये व्यवहार में साले
11
मेरा कल मेरे आज की आस में है
फिर मुझसे जुड़ने के प्रयास में है
मन का कच्चापन कहीं लें ना डूबे
फिर धडकने रूह के विश्वास में है
12
सोचोगे जैसा वैसे पेश आता है गम 
हर शख्स को यही समझता है गम
दिल से ना लगाओ हर बात दोस्तों
वरना उम्र को चाव से खाता है गम







Saturday 10 September 2011

मैं पहली ही अंगड़ाई में उसे सब बताऊंगा



7
मुझे यूं देखते है जैसे देखते नही 
नजर मेरी हालत पर फैंकते नही
इसे उनकी अदा कहूं या बेरुखी
जख्म देकर वो कभी सेंकते नही
8
दिल और दिमाग को घायल कर दे तो अच्छा
ये इश्क मुझको यारों पागल कर दे तो अच्छा
गर्मी ए हिज्र अब और ज्यादा सहन नही होती
बरसु खुदा पलकों को बादल कर दे तो अच्छा
9
क्या-क्या हुआ जुदाई में उसे सब बताऊंगा
यारों रात की तन्हाई में उसे सब बताऊंगा
महबूब से आखिर क्या छुपाऊंगा कब तक
मैं पहली ही अंगड़ाई में उसे सब बताऊंगा



कुछ शेर मेरे काबिल दोस्तों के लिए


4
कितनी भी छुपाओ कमजोरी दोस्तों
आखिर पकड़ी जाती है चोरी दोस्तों
बुरे वक्त में किसी का साथ चाहते हो
मत तोडना व्यवहार की डोरी दोस्तों
5
वो कहते है की कबाड़ी है हम
शेरों सुखन में अनाडी है हम
ये तो उनको ही भ्रम है वरना
कब कहा की खिलाडी है हम
6
बाप दादाओं की कमाई हैं
जो आपने ऐश में उड़ाई है
मेहनत से कुछ कमा पहले
फिर बताना क्या महंगाई है

रद्दी होने में किसी को वक्त नही लगता

1
बाहर से जो शख्स सख्त नही लगता
मत सोच गर्म उसका रक्त नही लगता
जवानी ताकत पैसे का गरूर मत करो
रद्दी होने में किसी को वक्त नही लगता

बात दिल से चलकर मुहं से निकलती है
तब जाकर कहीं सोच हर्फों में ढलती है
एक ही दिन में तो कोई सपने नही बुनता
परवाने के बगैर कभी नही शमा जलती है
3
वक्त के सांचे में ढल जाऊंगा रफ्ता-रफ्ता
सहने-तजुर्बों में पल जाऊंगा रफ्ता--रफ्ता
जरा भी चिंता ना करो मेरे हश्र की दोस्तों
कागज़ नही जो गल जाऊंगा रफ्ता रफ्ता