मेरी आँखों से वो मंज़र क्यूँ दूर नही जाता
तुम्हारे कदमों में हमने जब टेका था माथा
हमारी बेवकूफी थी या चाहत का था पागलपन
तुम्हे जब मान बैठे थे अपना भाग्य विधाता
तुम्हारे कदमों में हमने जब टेका था माथा
हमारी बेवकूफी थी या चाहत का था पागलपन
तुम्हे जब मान बैठे थे अपना भाग्य विधाता
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