Tuesday, 22 November 2016

मेरी आँखों से वो मंज़र क्यूँ दूर नही जाता

मेरी आँखों से वो मंज़र क्यूँ दूर नही जाता
तुम्हारे कदमों में हमने जब टेका था माथा

हमारी बेवकूफी थी या चाहत का था पागलपन
तुम्हे जब मान बैठे थे अपना भाग्य विधाता 

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