Tuesday, 22 November 2016

मेरी आँखों से वो मंज़र क्यूँ दूर नही जाता

मेरी आँखों से वो मंज़र क्यूँ दूर नही जाता
तुम्हारे कदमों में हमने जब टेका था माथा

हमारी बेवकूफी थी या चाहत का था पागलपन
तुम्हे जब मान बैठे थे अपना भाग्य विधाता 

Tuesday, 5 March 2013

देखता हूँ कब तक मेरी ख़ुशी बनकर रहोगे

देखता हूँ कब तक मेरी ख़ुशी बनकर रहोगे
कब तक हवा बनकर मेरी सांसो में बहोगे
मजाक है तो अभी से कदम हटा लो पीछे
बाद में वरना तुम भी मुझे बेवफा कहोगे

Thursday, 8 March 2012

तुम्हारी नाक पर गुस्सा क्यूं हर वक्त रहता है

तुम्हारी नाक पर गुस्सा क्यूं हर वक्त रहता है
मुझे लेकर तेरा लहजा बड़ा ही सख्त रहता है

मुझे सचमुच में खो दोगी एक दिन सच्ची कहता हूँ
तुम्हारी बेरुखी से तंग तुम्हारा भक्त रहता है
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जो सच में प्यार है मुझसे तो इतना क्यूं चिल्लाती है
मेरी हर बात के पीछे तू शक काहे जताती है

हजारों बार बोला है नही तुझको दगा दूंगा
मेरे विश्वास की धज्जी तू पल पल क्यूं उड़ाती है
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नही मुझ पर यकीं तुझको तो चल इक काम करता हूँ
कलम करके मेरा ये सर तेरे कदमों में धरता हूँ

तुम्हारे इक इशारे पर तबाह खुद को मैं कर लूँगा
नही बेकार में तेरे लिए मैं आहें भरता हूँ
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ना जाने क्यूं तुझे मुझ में अब शराफत नही दिखती
तुम्हारी आँख में पहले सी वो चाहत नही दिखती

तुम्हे ही सोचता रहता हूँ उठते बैठते जानम
इन दिनों रूह तडफती है कही राहत नही दिखती
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मुझे नाराज होना ही अगर आता तो बतलाता
तडफ का झोंका जुदाई में तुम्हारी और भिजवाता

अगर आंसू भी आते तो मैं कहता लोगों से हंसकर
घरेलू मसला है यारों नही है इश्क का खाता

Friday, 21 October 2011

क्यूं

क्यूं हर वक्त खुले रहते हैं गेसू तुम्हारे
किसके लहू से धोने की कसम खाई हैं
सब बयाँ कर दिया हैं बोझिल आँखों ने
शायद आपने न सोने की कसम खाई हैं

Friday, 16 September 2011

पैराहन नही सोच है शान मुफलिसी की










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जो जानते है हकीकत में हाल मुफलिसों का
उठाते है सरे बज़्म वो सवाल मुफलिसों का
दिलाकर ही छोड़ते है हक परस्तों को हक
रखते है जो अक्सर ख्याल मुफलिसों का
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पैराहन नही सोच है शान मुफलिसी की
रखियेगा पास सदा आन मुफलिसी की
अमीरी का लबादा ओढने वालों सुनों
बातों में छिपी है पहचान मुफलिसी की
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मुफलिसों का इतना ही कसूर होता है
बनावटी पन उनसे थोडा दूर होता है
नही बहा पाते मगरमच्छ के आंसूं
दिल उनका मजबूरियों से चूर होता है