Saturday 10 September 2011

रद्दी होने में किसी को वक्त नही लगता

1
बाहर से जो शख्स सख्त नही लगता
मत सोच गर्म उसका रक्त नही लगता
जवानी ताकत पैसे का गरूर मत करो
रद्दी होने में किसी को वक्त नही लगता

बात दिल से चलकर मुहं से निकलती है
तब जाकर कहीं सोच हर्फों में ढलती है
एक ही दिन में तो कोई सपने नही बुनता
परवाने के बगैर कभी नही शमा जलती है
3
वक्त के सांचे में ढल जाऊंगा रफ्ता-रफ्ता
सहने-तजुर्बों में पल जाऊंगा रफ्ता--रफ्ता
जरा भी चिंता ना करो मेरे हश्र की दोस्तों
कागज़ नही जो गल जाऊंगा रफ्ता रफ्ता

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